
High Court vs Supreme Court controversy
उच्च न्यायालय बनाम सर्वोच्च न्यायालय विवाद
- हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार के खिलाफ आदेश जारी किया था, जिसे बाद में वापस ले लिया गया।
- यह मामला एक सिविल विवाद (बिक्री लेनदेन में अवैतनिक राशि) को आपराधिक मामला मानने की अनुमति देने के कारण उत्पन्न हुआ।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इसे "हास्यास्पद और त्रुटिपूर्ण" करार दिया और कहा कि न्यायमूर्ति कुमार ने ऐसे आदेश पहले भी पारित किए है।
- इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि न्यायमूर्ति कुमार को उनके सेवानिवृत्ति तक कोई आपराधिक मामले न सौंपे जाएं और उन्हें एक वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ डिवीजन बेंच में बैठने की सलाह दी।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 13 न्यायाधीशों ने 7 अगस्त 2025 को पत्र के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू न करने की मांग की और एक पूर्ण न्यायालय की बैठक बुलाने की अपील की।
- उच्च न्यायालय का तर्क था कि सर्वोच्च न्यायालय का उच्च न्यायालयों पर प्रशासनिक अधीक्षण का कोई अधिकार नहीं है।
- इसके बाद 8 अगस्त 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश को वापस ले लिया।
वैधानिक और संवैधानिक पक्ष:
- सर्वोच्च न्यायालय का प्रशासनिक अधीक्षण: सर्वोच्च न्यायालय का प्रशासनिक अधीक्षण उच्च न्यायालयों के प्रति सीमित है।
- उच्च न्यायालयों की प्रशासनिक स्वायत्तता संवैधानिक रूप से संरक्षित है।
- सिविल विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की प्रवृत्ति पर भी रोक लगनी चाहिए।
निष्कर्ष
- यह मामला उच्च न्यायालयों की प्रशासनिक स्वायत्तता और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के बीच शक्ति संतुलन को रेखांकित करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का कदम न्यायिक जवाबदेही को बढ़ावा देने का प्रयास हो सकता है, लेकिन इसे अपीलीय या समीक्षा प्रक्रियाओं के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए।