
ZSU-23-4 "शिल्का"
चर्चा में क्यों: हाल ही में इसने “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान पाकिस्तानी ड्रोन, यूएसवी और मिसाइलों से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ZSU-23-4 "शिल्का" एक स्व-चालित एंटी-एयरक्राफ्ट गन है।
इसे सोवियत संघ द्वारा विकसित किया गया है।
यह प्रणाली निम्न-उड़ान वाले विमानों, हेलीकॉप्टरों और हाल ही में ड्रोन जैसे लक्ष्यों को निशाना बनाने के लिए डिज़ाइन की गई है।
इसे ड्रोन हमलों से महत्वपूर्ण क्षेत्रों की रक्षा के लिए तैनात किया गया है।
प्रमुख तकनीकी विशेषताएं
- एंटी-ड्रोन क्षमता: ड्रोन खतरों से निपटने के लिए, भारतीय सेना शिल्का और ZU-23-2 जैसे एंटी-एयरक्राफ्ट गनों के लिए विशेष 23 मिमी एंटी-ड्रोन गोला-बारूद प्राप्त करने की प्रक्रिया में है।
- मुख्य हथियार: चार 23 मिमी 2A7 ऑटोमैटिक तोपें, कुल फायरिंग दर 3,400 से 4,000 राउंड प्रति मिनट।
- अधिकारिता रेंज: वर्टिकल 2.5 किमी, हॉरिजॉन्टल 2.5-3 किमी तक प्रभावी।
- रडार प्रणाली: RPK-2 "टोबोल" रडार, जो 15-20 किमी तक के लक्ष्यों का पता लगाने में सक्षम।
- चालक दल: 4 सदस्य – कमांडर, ड्राइवर, गनर और रडार ऑपरेटर।
- गति और गतिशीलता: अधिकतम गति 50 किमी/घंटा, 450 किमी तक की रेंज।
भारतीय सेना ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के सहयोग से शिल्का प्रणाली को आधुनिकीकृत किया है:
- नवीनतम रडार: 3D एक्टिव फेज्ड ऐरे रडार, जो 15 किमी से अधिक दूरी पर लक्ष्यों का पता लगा सकता है।
- फायर कंट्रोल सिस्टम: इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल फायर कंट्रोल सिस्टम, जो दिन-रात और सभी मौसमों में संचालन की अनुमति देता है।
- इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेजर्स: शत्रु के जैमिंग के बावजूद संचालन की क्षमता।
- नवीन इंजन: कैटरपिलर 359 बीएचपी डीजल इंजन, जो -40°C से 55°C तक के तापमान में कार्य कर सकता है।